दुर्गा सप्तसती संस्कृत | Durga Saptashati Sanskrit PDF
Book | Durga Saptashati Sanskrit |
Author | Unknown |
Language | Sanskrit Mul Patham |
Pages | 68 |
Size | 15.6MB |
Category | Durga, Saptashati |
My Website | Study Number One |
दुर्गा सप्तसती संस्कृत | Durga Saptashati Sanskrit PDF
ॐ श्री दुर्गकाली देव्याः नमः ।
माँ भगवती की प्रेरणा मात्र तथा सदा बने हुए आशीर्वाद से ही प्रस्तुत ग्रन्थ के संकलन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । प्रस्तुत ग्रन्थ दुर्गा सप्तशती की एक एक प्राचीन पाण्डुलिप्पी से संकलित किया गया है।
इस ग्रन्थ से जुडी मेरी भावनायों को में व्यक्त करने में मैं असमर्थ हूँ, किन्तु संक्षेप में यह है की मेरे जीवन के बाल्य काल में मैं अपने दादाजी ( बाई जी ) को इस ग्रन्थ का अध्यन करते हुए देखता था।
प्रत्येक नवरात्र में विधिवत पूजा की जाती थी। तब से ही भीतर यह इच्छा थी की उप्युक्य ग्रन्थ का संकलन किया जाये।
गुरु जी की प्रेरणा तथा आशीर्वाद से यह दुर्गम कार्य अति सुगम हुआ। मेरे माता, पिता, भगिनी एवम् मेरी भार्या अंकिता वत्स के भरपूर सहयोग से में इस ग्रन्थ को संकलन में सफल हो पाया।
और मेरे पुत्र पार्थ शर्मा के स्नेहवशिभूत होकर मैंने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने के प्रेरणा की। इस ग्रन्थ के संकलन में अनेक व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त हुआ। कुछ स्तोत्र जो अब किसी प्रकाशित पुस्तक में प्राप्त नहीं हैं
egangotri से उपलब्ध हुए, इसके अतिरिक्त अनिमेष नागर (उज्जैन), चेतन पाण्डेय, श्रीवत्सा तथा अन्य मित्रों का सहयोग रहा।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रचलित सप्तशती से कुछ भेद है । प्ररम्भित पूजा में कुछ विशेष मंत्र हैं तथा उत्तरार्ध में रहस्यों के स्थान पर पंचस्तवी के स्तोत्र एवं इन्द्राक्षी स्तोत्र, ज्वालामुखी स्तोत्र एवं लघु सप्तशती है। इस ग्रन्थ में कुछ अन्य स्तोत्र सम्मिलित किये गए हैं जो मूल पाण्डुलिपी में नहीं हैं।
॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ अथः ॥
ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गाक्षमा
शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते 191
[अपने सम्प्रदाय के अनुसार पूजापूर्वाङ्ग सम्पन्न करे । शाक्तपवित्रधारण- मूल मंत्र से धारण करे । आचमन- ऐं आत्मतत्वं शोधयामि स्वाहा ॥ ह्रीं विद्यातत्वं शोधयामि स्वाहा ॥ क्लीं शिवतत्वं शोधयामि स्वाहा ॥ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामि स्वाहा ॥ ततः मूल मंत्रेण प्राणायामं कुर्यात् ॥ प्राणायाम- ऍ १६, ह्रीं- ३२, क्ली- ६४ ; यदि अशक्तौ ऐं ३ ह्रीं ६,क्की- ९ ततः श्रीगणेश गुर्वादीन्नत्त्वा। सङ्कल्प – ॐ तत्सदद्य ब्रह्मणो द्वितीय प्रहराद्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे ह्यार्यावर्तक देशान्तरगते कलियुगे कलिप्रथमचरणे पुण्यक्षेत्रेऽमुक अंगिरा सम्बत्सरे अमुक ऋतौ अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे अमुकामुकराशिस्थ रव्यादिग्रहस्थित बेलायाममुक गोत्रोत्पन्नामुकशर्मा जन्मलग्नात् वर्षलनाद्गोचरादमुकामुक ४/८/१२ स्थान स्थितसूर्यादिक्क्रूरग्रहा तज्जनितारिष्ठ निवृत्ति पूर्वकं दशान्तरदशा चोपदशा दिनदशाजनितारिष्ट ज्वर पीडा दाहपीडा नेत्रकर्णोदरादिपीडा निवृत्तिपूर्वकं अल्पायुनिवृत्ति पूर्वकश्चाधिदैविकाधिभौतिकाध्यात्मिकजनित क्लेश कायिक वाचिक मानसिक त्रिविधाघौघ निवृत्ति पूर्वकं श्रीजगदम्बा प्रसादसिद्धिद्वारा सर्वापन्निवृत्तिपूर्वक सर्वाभीष्टफलावाप्ति धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थं राजद्वारतः व्यापारतश्च लाभार्थं विजयार्थं शरीरारोग्यार्थं परमैशर्यादिप्राप्त्यर्थं अस्माकंसर्वेषांसकुटुंबानां
क्षेमस्थैर्यायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्ध्यर्थंसमस्त मंगलावात्यत् श्रीचण्डीपूजामहंकरिष्ये ||
तदनन्तर रक्षार्थ मातृका कवच का पाठ करे ।]
मातृकाकवच ।। ॐ शिरो रक्षे ब्रह्माणि मुखं माहेश्वरी तथा ग्रीवां रक्षतु कौमारी हृदं रक्षतु वैष्णवी ॥ वाराही नाभिदेशंतु
कटिमैन्द्रीत रक्षतु चामुण्डा जानुदेशंतु पादौ रक्षतु चण्डिका ॥३॥ अङ्गप्रत्यन्ग सन्धिश्च सदा रक्षन्तु मातरः | ४ | दुर्गा सूक्तम ॥ ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥ इति मूल ॥ ॥ अङ्ग न्यास ॥ ॥ॐ जातवेदसे ललाटे । सुनवा कर्णयोः । सोमं नासिकायां । अराति चक्षुषे । यतु ओष्टयो । निः