Vivah Paddhati With Hindi PDF | विवाह पद्धति भाषा टीका सहित
Book | Vivah Paddhati |
Author | Unknown |
Language | Sanskrit Moolam |
Pages | 87 |
Size | 15.2MB |
Category | 16 Sanskar Paddhati |
My Website | Study Number One |
Vivah Paddhati With Hindi PDF | विवाह पद्धति भाषा टीका सहित
प्रणम्य परमात्मानं गणेशं च गजाननम् । वर्णानां च हितार्थाय पद्धतिः क्रियते मया ॥
टीका-परमात्मा और गणेश जी को प्रणाम करके वर्णों के हितार्थ विवाह पद्धति की भाषा टीका की जाती है।
(विवाह कर्म में कर्मों की संख्या)
पादत्राणविमोचनं च वरणं वाचार्चनं विष्टरं, पाद्यं विष्टरमर्घ्यमाचमनविधिर्मधु पर्काङ्गन्यासौ तथा। गोमौड्यग्नि सुहस्तले पनविधिश्शाखाकुशैः कण्डिका । कन्या दानसुवस्त्र, ग्रन्थिहवनंह्यन्तरपटपरिक्रमः ॥ १ ॥ पुनः सप्तपदीं कृत्वा वाम दक्षिणकं तथा । दक्षिणादानसंकल्पं अक्षतांश्चैव दापयेत् ॥२॥
टीका- (उपानह) अर्थात् जूते उतरवाना, (वरणं) पौंची बांधना, (वाचा) अर्थात् कन्या पिता के वचन, (अर्चन) अर्थात् मुकट का पूजन करना, (विष्टर) आसन, पैर धोवे, दूसरा विष्टर, अर्ध, आचमन, मधुपर्क, अंगन्यास, गौ संकल्प, मौड़ी, अग्नि, हाथ पीले, शाखोचार, कुशकण्डिका, कन्यादान, ४ वस्त्रदान,
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गन्ध्रिबन्धन अर्थात् गठजोड़ा, हवन, अन्तरपट, परिक्रमा अर्थात् चार फेरे, फिर सप्तपदी अर्थात् सात वचन, बायें दाहिने होना, विवाह कराई दक्षिणा का संकल्प, देवताओं पर मन्त्र से अक्षत छोड़ना, ये उपर्युक्त कर्म क्रम से करने चाहिए।
आचार्यः पूर्वे पश्चिमाभिमुख उपविश्य वर सम्मुखम् पण्डित पूर्व की तरफ को बैठे, पश्चिम को मुँह करके वर के सामने ।
(प्रथमं वेदीं रचयित्वा )
पहले पाधा मिट्टी की दो वेदी बनावे, एक नवग्रह की उत्तर में, दूसरी हवन की दक्षिण में, फिर उन वेदियों पर प्राधा चून से चौक पूरे
(विवाहसमये कन्यापिता स्नातः)
विवाह के समय कन्या का पिता स्नान करे या हाथ पैर धोकर कुल्ला करे। (शुचिः शुक्लाम्बरं धृत्वा ) शुद्ध धोती, दुपट्टा श्वेत वस्त्र पहिने
( ततः कन्यापिता वेदिकामुपगच्छेत्) कन्या का पिता मण्डप में उत्तर को मुँह करके वेदी के पास बैठ जाये।
( ततः कन्यापिता सादरं वरमाह्वयेत्) कन्या का पिता आदर से वर को बुलावे ।
(वरस्तत्रागत्य उपानहौ त्यजेत् ) वर आसन से अलग जूते निकाल दे, फिर पाधा यह मन्त्र पढ़े
ॐ अथ वाराह्या उपानहा उपमुञ्चते ऽग्नौ हवै देवाघृतकुम्भं प्रवेशयांचक्रुस्ततोवाराहः सम्बभूव तस्माद्वाराही मेदुरो घृतादि सम्बभूव संजानते समेवैतादृशमभिसंजानते तत्पशूना मेव तद्रसमभिसंतिष्ठते तस्माद्वाराह्या उपानहा- उपमुञ्चते ॥१॥ ॐ अथ
वाराहविहितमिति तत्र असीदित्ये व्याध हवि स इमान इह व्यास प्रदेशमात्रीं ततो मूक इत्यर्थे वाराह्या द्वितीय उपानहा उपमुञ्चते ॥२॥
(कन्यापिता वरपादौ प्रक्षालयति ) नीचे लिखे श्लोक से कन्या का पिता वर के पैर धोवे। यत्फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे । तत्फलं पांडव श्रेष्ठ विप्राणां पादशौचने ॥ (हस्तीप्रक्षाल्य ) कन्या का पिता हाथ धो डाले। मन्त्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वा ॥
(वरः पूर्णाभिमुख उपविश्य) वर पूर्व को मुँह करके आसन पर बैठे। (वारिणा वरात्मानं सिंचेत्)
पाधा वर के ऊपर दूर्वा से गंगाजल का छींटा लगावे। मन्त्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥ तीन बार पढ़े।
(वरस्यासनेऽक्षतान् क्षिपेत्)
नीचे लिखे श्लोक से पाधा वर के आसन पर चावल छोड़े।
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ (वरः, प्राङ्मुखश्चोपविश्य)